________________
॥ दूहा ।। दान वभीषण नू दीयौ, प्रभु तुलछी रो पान । तोन ओळखियो त्रिगुरण, औ थारी उनमान ॥१॥ भजि भजि तोनै भेटियो, अरथ वात रौ अह । प्रथळ कर रे प्राणिया, नारायण , सू नेह ॥२॥ हेत घणे सू पूज हरि, नारायण न विसारि । आठ पोहर अति प्रातमा, चत्रभुज नै चीतारि ॥३॥ आफे तरिसे आतमो, गाइयै हरि रा गीत । पीरदास करजे प्रथम, पुरुषोत्तम सू प्रीत ॥४॥ ध्यायौ तोनै ध्यान धरि, आराह्यो जग ईस । त्यां पायो वैकुण्ठ पुर, से जीता जगदीस ॥५॥ आप सरीखा औळगू, ते कीधा करतार । तू समरथ वसदेव तरण, निमष न लागी वार ।।६।। गोपी कहे माहीजे गौ, ग्वाळे कहै उ ग्वाळ ! भगते कहियो औ भली, कस कहै औ काळ ॥ ७ ॥ वैकुण्ठ रौ वासी ब्रह्म, जीवा रो पति जीव । त्रिगुण नाथ सरिखी तरह, दशरथ तणे दईव ।।८।। कहि के नेहो को करा, राम कमळ' री रारि । कर पुकारा पीर कवि, ओ वाराह उधारि ।।६।। फरसराम तू फावियो, सखरी कियो सग्राम । हंस राम अवतार हरि, तू वामण विसराम ।। १०॥ कूरम मछ रिखव कपिल, खाधी अमृत खाड । भगतवछळ ते भांजिया, हरणाकुस रा हाड ॥ ११ ॥ नाराइण हैग्रीव नां, पढे अहो निस पीर । धानतर दत पिथ धरणी, वडो किसन रौ वीर ॥ १२॥ प्रतिमा मै पैठो प्रभु, अईयो बुध अलाह । निकळक कद देखा निजर, पतिसाहां पतिसाह ।। १३ ।।