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। १०४ ] .२३----गीत जाति अठतालो लालस पीरदांन रो-कहियो, भगतिदान देवरा रो जगपति नान्हीयौ वसदेवि जायों, बड़े भगते थाळ वायो। हरिस्त हरित हुलरायौ, बालोये गायो । प्रघळ देते दुख पायो, निसचरां ना सुख नायो। कंस मन भी हुयो कायो, पालमा प्रायो॥१॥ -मेघ इद रौ मद मुडियो, चक्रधर रै विरिद बड़ीयो । घणु सखरो घाट घड़ीयौ, विलोणा वड़ोयो ।। जवनं सां नित नित युडीयी, पलव ऐकरिण धीकि पड़ीयाँ । लाख देता हूँत लडीयों, कंसरी कड़ीयो ॥२॥ हालियो अकरूर हड़बड, विमळ बोरी हुँति बड़चड़। कस अपरि गर्यो कान्हड़, नंद रो नान्हड़ ।। भगतवछळ भूवरो भड़, जो औ कार्ड कसरी जड़ । पीटिया सहि दईत पड़ पड़, झोरीया झड़ झड़ ॥ ३ ॥ मात पित सां हुया मेन, बड़ी मा कीघ कीळा :लाछिवर री निरखि लीला, लाछिवर लीला॥ वक्क नायरा हार चीळा, किसन रमीया रास कीळा । निमो हो नीळ नीळा, पंगरण पीळा १४॥ मारि तारो तुरत मासी, पिता री काटेयी प्रासी । वामणी द्वारका वासी, .. ......... ....." किसन चड़िने गया .कासी, असुर का "णासी । खरी दीजै भगति खासी, दान कवि दासीना ५॥