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२४-गीत सांणोर, लालस पीरदांन रौ कहियो
श्री नरसिंघजी री स्तुति रो पहिलाद समरियौ आयो जगति, चत्रभुज निमो भगतरी चाड । वहनामी.रै दाढ तणी वळ, हरिणख तंरणी जारिगस हाड ॥१॥ पड़ियो असुर ऊपरा पड़िो, कोपिनो योपिनी निमो कंठीर । माझे विसळे दैत झरिड़ियो, वड़ियो मांस भरथ रै वीर ॥२॥ हरिणाकस निरदळियो हाथे, गिलियौ गुद्र नसो ब्रम-ग्यान । लिखमी धूजि निमे पाय लागी भिळे भिळे दरसरण भगवान ॥ ३ ॥ वामणदेव भयाणक "विणयो, 'निमो नमो नरसिंघ नरेस । सुप्रसन हुए जगत ,गुर सांमी, पीरियो दास कहै ,परमेस ॥४॥
२५-गीत लालस पीरदांनजी रो कहियो ।
गंगा सिनान रो औ करा वदगी तुम्हारी बाप, आपी आप ध्यान करा. जोरपोपी अजपा जाप । न जागीयो जाप, अस्वरां उथाप आप महापाप परामेटो॥१ समद तरीजो केम जीवना संताप, राकसां नां रीठी पाठी। भीतरा प्रभु दीठोजी, घट मां दीठो दीठो दीठी देव ॥ २॥ माहरे .तू मात ताति, ताहरी भुजन मीठौ । सवाहो नही पीरदास सामळेरी छेव ॥३॥ गंगरो सिनान करै, औरणरो निवास ग्रहै । प्रागरै सिनॉन कियां पातग पहार प्राण नीड वड़ा छौं ॥४॥
--पीरदांन लालस