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________________ [ १०१ ] १७-गीत सांणोर पीरदांन रो कयौ - थाहर देवरण रो .... ... .... . ." अतरजांमी, वहनांमी दे पाव .. .. बाज । गोविंद मेर सरग रा ग्रामी, भामी हो भांमी सुभराज ॥१॥ राजि रा पाउ पताळ तणी रुख, मसतक सरगा जिसी मडारण । राजरा छूमरण दिसै रुघराजा, मन ससिहर कूखा महिराण ॥२॥ असट कमळ विचि वास आपरी, वळिहारी हो वळिभद्र वाप। प्रारी भगत करै छ अरजां, आपरौ रूप दिखाळी आप ॥३॥ राजिरी पार न जांगां रावव, आपरै नाम तणो आधार। यांहरां वीच पोरना थाहर, दोर्जे हो दीजै दातार ॥४॥ १८-गीत पीरदांन रो कह्यो अवगत री स्तुति महाराज तणे कहिले कस मामो, नरकासुर बेटौ निज नेह । सुसरी रीछ रुखमयो साळी, अविगत तणे गनाइति एह ॥ १॥ सुहिद्रा विहिन वाप तो वसदे, कोसिलि मात निमो करतार । भांमिरिण सीत द्रोपदी भगतिणि, जांमिणि कुरण हो साह निजारा रुखमरणो राजि तणे पटराणी, दईता हुँता सदा दुमेळ। प्रम परधान वात ना ब्रह्मा, मुहमद .. " • “मेळ ॥३॥ किरण रो मोत कुरण रो केसव, वहनांमी सिगळां रौ बाप । पीरियौ करि थारौ परमेसर, अविगत नाथ वडेरा आप ॥ ४॥ १९--गीत पीरदांन लालस रो कहियौ मेह वरसावरण रो हुये परा हरीयाळ हरीयाळ करि मनोहर, जाय पातिगि परा -धरम जागे । जीव नव खंडरा रिजकि मार्ग जुनो, । मेह करि गावडे घास मागे ॥१॥
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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