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________________ [ ८७ ) घरणी करि जोर असरारण जूटा घणी, तो वहो त्रिधारो खडग निकलक तरणी। डहिकिया डमरू दात दांते डस, . खाग खागा सरिसि खान खाना खस । बाथ बाथां पड़े वारण वारणा बरगण, मिलिकि मिलिका मिळे असरां मरण । वाजिया भला रिणि खेत मा वीरवर, गाजिया रामचद किलग करता गमर । झाल सा वालिया किलगना भाटिया, काल रे कालि कालीगना काटिया । काइमा देव साधा सरिसि काहला, वसुह मा चालिया रगत रा वाहला। प्रधळि रिरिण खेत मा जवन पाथा पड़े, दईत सहि धरिण रै ऊपरा दड़दई । मरडकै कलायै हाडा डा मुड', गिले बम कीच सहि कोड कोडे गुड़। । धरिणि रे ऊपरा धडा रा धूबका, . घिणी कुरण झालिस हे मै थारा धका । घिरणी जीवा तिणं धीक साधी वीया, हला सा तारणीया हीसु एही विया । आलमा निमो इलि भार उतारिया, मारका दइत सहि किलग रा मारिया। 'पहाड़ां हेठि दीन्हा परा पापिया, इन्दरा राज वलिराउ ना आपिया । थूल ऊयापिया साध ते थापिया, किलग रा सेन तरूपारि सा कापिया। खली रै वासतै खाड सखरी खणी, धोख रिखां कन्है आवि वैठा धणी। किला
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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