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आक नीबा तरगो धाख ग्रघ केरड़ा,
विरिरिण नीली हुइ धानरा ढेरडा । साहिव तर सत आठ सहिनारणीया,
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फळी वह भाति हि वेलि फुलाणिया । चदमा तरणी सहि मेहणो चालियो, मेघ रिषि त घरि प्रमेसर माल्हि । प्राहणो हुआ साधां घरे पिताई, कालरा मांहि ऊगा कमळ किताई । हाथिरणी सादि रो दूध पालट हुग्रो,
कहै ससि लोक श्रौ समद इमिरित की । थले हीरा हुआ थले मोती थिया,
लाछिवर तरणी हव नांम मरदा लिया । वाभरणा तर घरि नूर वरते वहत,
जिसे कलगना आज चडिया भगत ।
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आज उजेरणमां उभै दळ ग्राहुड़,
खरा भड़ रायरा सँग आया राग रहमाण सुरतागं पुरिषा रतन,
किलंग रे ऊपरा चालि आयो किसन । हरिखि हुड़ जोगरणी ताम नारद हसे,
कांइमे त्रिधारी खडग कडिया कसे । वाजिया घनख सुर संख वह वाजिया,
रिणि पुड घूजिया गयरण पुड गाजिया । धरणी रे हुकम सा वहत मादल धुर्वे,
हुआ वरघू सवद देव दाराव हुवे | सालले सीधूश्री राग सरणाईया,
भलाई आज भारथ करो भाईया |
मेह मेहा सरिसि आवि जूटा मोहरि,
वारण वारणा सरिसि वोटिया वहादरि ।