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________________ 1 ८५ ] वापडै कोडि हेक पीर घोड' चडे, वीर वह मीर के किताई वडवडे । पछिम पतिसाह खडिस कटक पाधरी, खेचरां भूचरा तरणी मेळो खरो । खेतपाळां तणौ साथ साथै खिले, हरि तणौ कटक काळीग ऊपरि हिल । भुलौ है भुलौ भगवान थारा भगत, बभीपण जिसा वळिराम सरिखा वहत । मिळे दळ मोकळो कोडि अपछर मिळ, भूत भगवान सा भूत साचा भिळे । निमो नरनाह निकळ क चडियौ नरिदि, साथि सातइ सरग साथि सात समद । सहस कर कोडि सिव कोडि इ हि सामठा, आज सहि किलग रै ऊपरा ऊलटा हेक हरिचद जिसा कोड़ि हरिचद हुआ, __ दोटि सा असुर परमेसि दीन्हा दूना । मुहमदा अली मुसा मिले मोकळा, ___ डाकिणे प्रामिस मांस वाळा डळा । धू घड आज ब्रम कीच पिणि ध्रापस, अधिकि सुख वाभरणा साधुयां आपसे । पाडवा सरिसि परमेसवर पूछिस, __ मान गमान तोफान नां मू छिस । महा सेतान हुई सै परी माजन, सुख कीऔ धेन रै मेघ रै साझने। दईत रे राज मा परै वरताहि दुख, सील नै साच सत घरम रै हुये सुख । अहो दारणव किलग अलख पाया अही, सुरज्या कही सो बात जाणे सही ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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