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वेद च्यारइ नै ब्रह्म वाखाणीयो, जडाधर सरीखें प्रमेसर जागीयो । पदमावती,
उतारौ आरती ।
पेख पारबती अनै अनत रे ऊपरा गाईया गोत उतावला, प्रभुराग रीवा तर घर पावला । जमा गोरजा घणौ साराहियो,
अहिल्या
अलख ना भलाई भला आराहिया, पीरि रास घिरणी पाटि बैठा परम,
धरिरिण नीली हुई घरगौ वधियौ धरम । ॥ कविति ॥
वघे धरम सत वघे, साच सतोष सवाई,
जती सती जोगिया, भजन व तुठो भाई ।' भजन नमो भगवान, साध ब्रह्मा सिवि सकर,
समरड तीनइ सकति अलख आदेस अपपर ।' आदेश करे तुना अमर नाग करें आदेस नर,
पीरीयो दास कासु पर चतर नमो तु चक्रवर इति श्री पातिग पहार सपूर्णं समाप्त ॥ श्री ॥