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जिनराजसूरि-छति-कुसुमांजलि
इम सीधा इण डूंगरइ, मुनिवर कोडाकोडि । पाजइ चढतां सांभरइ, ते प्रणमू कर जोडि ॥श्री०॥६॥ जे बाघणि प्रतिवूझवी, ते दरवाजइ जोड। गोमुख यक्ष कवड़ मिली सानिधकारी होइ॥श्री०॥१०॥ विधि स्युजे यात्रा करइ, सुरनर सेवक तास । 'राजसमुद्र' गुण गावतां, अविचल लील विलास ॥श्री०॥११॥
शत्रुजय (विमलगिरि ) तीर्थ स्तवन सांभलि हे सखि सांभलि मोरी बात चालउ हे,
सखि चालउ तीरथ परसरई। साचा हे सखि साचा साजण तेह साथइ हे,
सखि साथइ जे इण अवसरइ ॥१॥ तीरथ हे सखि तीरथ 'विमलगिरिद',
देखण हे सखि देखण तरसइ आखड़ी। किम करि हे सखि किम करि आयउ जाय,
दीधी हे सखि दीधी देव न पांखडी ॥२॥ मारगि हे सखि मारगि सहियर साथि,
चालण हे सखि चालण पगला चलवलइ।। भेटण हे सखि भेटण आदि जिणंद,
मो मनि हे सखि मो मनि निसदिन टलवलइ ॥३॥ सूती हे सखि सूती पडू जंजाल,
___जाणु हे सखि जाणु भेट हुई सही । हेजइ हे सखि हेजइ नयण भरॉइ, ... :
जागु हे सखि जागु तब दीसइ नही ॥४॥