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जिनराजसूरि- कृति - कुसुमांजलि
नेसु हो तुम्हचइ निसदिन रूसणर हो,
माहरइ तिण सु ́ प्रीति ॥ १ ॥ नेहनइ हो तर वनवास दोयउ हुतउ हो, घरतउ नवि बेसास सेहन हो आदर सुतेडाविनइ हो, मइ राख्यउ छइ पास ||२|| जिण सु हो कईयs मीटिन मेलणउ हो, करतउ कुरुख सदीव । मइ तिण भुं हो एकारउ माडियउ, लागउ माहरउ जीव |३| वयण न लोपइ तू पिण जेहनउ हो, काम काढू पिण जेह । नाक नमिण पिणन करू तेहनइ हो, परठि अछइ मुझ एह ॥४ मुझकरणी साम्हउ न जोइयइ हो, वीरसेन 'जिनराज' । पर दुख कातर विरुद विचारनइ हो, दरसण दे महाराज १५ ।
(१८) श्री देवजस जिन गीतम्
देशी - वेग पधारउ महलां थी सरंमुख साहिबनाई मिल्या, फेर पडइ कुजकोइ ओलगडी अलग रहयां, सदेसड न होइ ॥ १ ॥
देवजसा दरसण दीयउ, ए मुख खरी रुहाड़ि । अतुली बल जिम तिम करो, एह प्रमाणइ चाडि ||२||दे० || जउ छोरु करि जागस्यउ, तउ पूरवस्यइ लाडि ।
मलवेसर इण वातनउ, मत को जाणउ पाड ||३||दे० ॥
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मन नी वात सहु कहुं, जउ भेटु जगनाथ ।
कहिवउ तउ छइ मुझ वसू, करिव छइ तुम्ह हाथ || ४ || दे० बहती वात सहू करs, पर पूठइ 'जिनराज' ।
पिण मुरइ न मिटी सकइ, दीवानी हुवइ लाज ॥५॥ दे० ॥ -