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________________ श्री विहरमानविंशति जिन मात (१) श्री सीमधर जिन गीतम् राग-कलहरो देशी-पोपट चाल्यउरे मुझ हियड़उ हेजालुयउ, भाखर गिरणइ न भीति । आवइ जावइ रे एकलउ, करिवा तुम्ह सुप्रीति ।।१।। सीमंधर करिज्यो मया, धरिज्यो अविहड नेह । अम्हचा अवगण जोइ नइ, रखे दिखाडउ छेह ॥२॥सी०॥ तुम्हचइ भगत घणु धरणा, अरणहतइ इक कोडि । अम्हची मीटिन को चढयउ. साहिव तम्हची जोडि ॥३॥सी दक्षिण भरत अम्हे रहूं, पुखलावति जिनराज । कोइक दिन मिलिवा तणउ, दीसइ अछय अन्तराय ॥४॥सी० । दीधी दैव न पखड़ी, आकेम हजूर । पिरण जाररोज्यो रे वंदना, प्रह ऊगमतइ सूर ॥५॥सी०॥ कागलीयइ लिख कारिमी, कीजइसी मनुहारि ।, अम्हची एहीज वीनति, आवागमन निवारि ॥६॥सी०॥ परम दयाल कृपाल छउ, करिज्यो अवसर सार। श्री 'जिनराज' इसु कहइ, मत मूकउ वीसारि ॥७॥सी०।। (२) श्री युगमन्धर जिन गीतम् ढाल-१ सुरण सुरण वाल्हहा. २ अवला केम उवेखीये. नी देसी सई मुख हुन सकू कही, आडी आवइ लाज । रहि पिण न सकु वांपजी, इम किम सीझइ काज रे ॥१॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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