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श्री वर्तमान जिन चतुर्विंशतिका
मांगी कविजन जीभ म हारउ,
___ जउ लाघउ हुवइ गुरुमुखि भेद ॥१॥१०॥ आणइ नेह न जे गुण गाता, कडुए वचने नाणे रोष । तारउ तारउ कहिआ न तारइ,
मांग्यउ दीयइ नही ते मोख ॥२॥आ० किणही विधि करतार न तूसइ, तउ ते केम करइ बगसोस । सेवक ही नइ जो वसि नावइ,
साचउ तउ ते हिज जगदीस ॥३॥आ०।। प्रीति न पालइ ते किण ही सू , सउ अपराधे नाणइ द्वष । आप समान करइ ओलगता,
पुरुपोत्तम नउ एह विसेप ॥४॥आ०11 कहि कहि नइजे भगति करावइ, ते 'जिनराज' म जाणउ देव । देवां माहि अछइ देवाचउ,
__ कोडे गाने करिस्यइ सेव ||५||अ०॥ (१९) श्री मल्लि जिन गीतम्
. राग-मोरीयानी देसी दासे अरदास सी परि करइ जी, सूल दीसइ नही कोइ। कान दे वात न सांभलइ जी, तउ निवाजस किसी होइ।।१।।दा० मल्लि मन माहि राखइ नही जी, भगतजन वीनवइ जेह । कोड़ि परि राग जउ को करइ जी, तू किम करइ सनेह।।२।।दा० आदर मानन को दीयइ जी, गनह बगस्यइ नही एक । आपणउ जाणि न करे पखउ जी, देहधर आवड़ी टेक ॥३॥दा०६