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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
(१७) श्री कुन्थु जिन गीतम्
राग--मल्हार, वेलाल, जिम तिम हुआवी चढयउ जिनजी, मीटि तुम्हारी माहि । मत करज्यो वीजा वमु जिनजी, ल्यउ पोतइ निरवाहि ।।१।। हिव रे जगतगुरु सुध समकित नीवी आपीयइ । करुणागर हो करुणा करि कुथु कि,
सेवक थिर करि थापीय॥०॥ पडयउ घणउ छइ पांतरउ जिनजी, जउ जोसउ करतूत । पिण प्रभु नइ पूठी हथइ जिन जी,
सकल रहइ घर सूत ॥२॥ हि०॥ मइ खातउ मांडयउ नवउ जिन जी, तिण छइ पग पग धीज। दीठउ अणदीठउ करउ जिन जी,
लाज रहइ तउ हीज ।।३।। हि० ।। ऊँची नीची वात मइ जिनजी, हु स्यु धालु जीव । मोटा वगस्यइ सउ गुनह जिन जी,
साचड कहइ सदीव ॥४॥ हि० ।। चरण न छोडु ताहरा जिनजी, इण भव ए इकतार । 'राज' अछइ विवहारीयउ जिन जी,
____ करि चलतउ ववहार ॥५॥ हि०।। (१८) श्री अरनाथ जिन गीतम्
__राग-प्रभावती-वेलाउल माराघउ अरनाय अहोनिसि,मन माहि राखउ लाख उमेद।