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श्री वर्तमान जिन चतुर्विंशतिका
तारउ मुझ सरिखउ मेवासी, तारक विरुद खरउ तउ थासी। जे जाया छई जसनी रातइ,
ते तउ जस लइ जिण तिण वातै ॥३॥ पहिली तउ सउ वीनति कीजइ, मोटां सुहठ पिण मांडीजइ । गिरुआ किम ही छेह न दाखई,
जिम तिम सह को ना मन राखई॥४॥ भव भव देवल देवल भमीयउ,सिवसुखदायक कोइन मिलीयउ। धर्मनाथ 'जिनराज' सखाई,
- करतां चढती दउलति पाई ॥५॥
(१६) श्री शांतिनाथ जिन गीतम्
राग-धन्यासी मिश्र-हाजरनी जाति काल अनतानंत भव माहे भमतां हो जे वेदन सही। सुकहीयइ ले नाम बांभणपिण, गत हो तिथि वाचइनही।।१। पारेवइ सु प्रीति तइ जिम कीधी हो तिमतू हिज करइ । सांभलि ए अवदात, सहु को सेवक हो मन आसा धरइ ॥२॥ हुआयउ तुम्ह तीर, हरि करि मुझ पर हो सोम नजर करउ । न लहइ अ तर पीड़, अंतरजामी हो तुकिम माहर्रउ ॥३॥ यानउ दीनदयाल, दुखीया देखी हो जउ नावइ दया । कुण करस्यइ तुझ सेव,वहतइ वारइ हो जउ न करउ मया ॥४ लाधउ त्रिभुवन राज, जउ साची सी हो तुझ सेवा सधड । हुवइ समवड़ि "जिनराज'रूख प्रमाणइ हो जिम वेलउ वधश।५