________________
___ जिनराजमूरि-कृति-कुसुमांजलि
(१४) श्री अनन्तनाथ गीतम्
राग-सिन्यु पूजा नउ तूं वे परवाही, तड समता गाढी कर साही । राही जिम तुझ आण आराही, पूरइ तउ पूरी पतिसाही ॥१॥ मइ साची सेवा विधि जाणी, भूखा भमइ अवर सवि प्राणी। मन सुध आराधई तुझ वाणी, तउ संतोषीजइ आफाणी ॥२॥ हेलइ हेक वचन ऊयापई, ते तउ पंड भरीजईपापई। नाम जपइपरमेसर जापड, तूंकिम तेहनउ पातक काप|३ भगति जुगति नउ पइलउ पार,मईलाधांजिणवर आधार। जिण तूझ काईन लोपीकार, तिण तउ भगति करी सउवार॥४ नाथ अनंत तणउ 'जिनराज' लाधउ माझ सही मइ आज । आगम ने वचने मुनि 'राज' चालइ त उ द्यउसिवपुरुराज ॥५॥
(१५) श्री धर्मनाथ जिन गीतम् राग--गोडी ढाल- १ नमणी खमणी.
२ सोई सोई सारी रेन गुमाई. भवसायर हुती जउ हेलइ, तार सह पोता नइ मेलइ । आगलि पाछलि इम जाणउ छउ,
तउ इवड़उ स्या नइ तारणउ छउ ॥१॥ करम विवर देस्यइ जिण दीस्य,संजम पलिस्यइ विसवा वीसइ तइयइ फलस्य वछित मोरउ,
तउ सउ तुम्हचउ नाह नहोरउ ॥२॥