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________________ श्री वर्तमान जिन चतुर्विंशतिका सइंगू माणस सिवपुर चालतउ, न मिलइ इण कलिकाल। प्रभु लगि सपगउ पहुँच सकइ नही रे, निपगइ नउ जंजाल का० २।। हाथ न झालइ कागल केहनउ रे, तउ वाचइ किम तेह। अलविन पाछउ पिण* ऊत्तर लिखइ रे, साहबीयउ निसनेह ॥का० ॥३॥ नीरंजन तो किमहिन र जीयइ रे,जउ लिखउ वीनतो लाख । दूर थका पिण भगति हुइ रहउ रे, ले सहुकोनी साख ॥का० ॥४॥ एक पखी जउ जाणउ पालस्यां रे, पदमप्रभु सुप्रीत । तउ कागल 'जिनराज' म मूकेज्यो रे, इणि घरि छइ आ रीत ॥का० ॥५॥ (७) श्री सुपार्श्व जिन गीतम् राग-~-मारू आज हो परमारथ पायउ, ज्ञानी गरु अरिहंत वतायउ। राग नइ द्वेष तणइ वसि नायउ, परम पुरुष मइ सोइज ध्यायउ आ०11९।। कर जोडी जउ को गुण गावइ, कडुए वचने कोइ मल्हावइ । तूं अधिकउ ओछउ न जणावइ, , समता सागर नाथ कहावइ ॥आ० ॥२॥ साचउ सेवक जाणि न मिलीयउ,दुरजन देखिन अलगउटलीया इाण चार - * किम
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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