SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनराजसूरि रास प्रति सखरी सुखडी अरणावर मात पिता खोलउ भरावइ ॥४॥ घरमसी साह करइ गहगट्ट, दान मान लहइ चारण भट्ट । इरि परि कुमर लेसालइ आवइ, गुरुजी कुमर नइ पाए लगावइ ॥ ५ वेकर जोडों बयसइ आगइ गुरुजी पासि विद्या हिव मागइ | भले भरगाव कहइ गुरु एम, भिलिजे सहु सु करे वेढि नउ नेम ॥६ भरण' गुरिण गुरु पूजा करि ऊठइ, तेहवइ सरसति माता तूठइ । चटड़ा नइ सु खडी खवरावइ, खड़िया लेखरिण वलि दिवरावइ ॥७ इरिणपरि भरिणवा मुहरत साध्यउ, कुमर तरगउ जस सगलइ वाध्यउ ! भरें भरगइ भइ अक विचार, सिद्धो समान भरणइ मति सार || चारणायिक नीति शास्त्र उदार. कुमरइ भण्या ग्रंथ विविध प्रकार । षड भाषा चउद विद्या निधान, चतुर विश्वक्षरण कुमर प्रधान ॥ ॥ पुरुष नी बहुत्तर कला जारइ, कुमर सौंसार तरणा सुख मारणइ । भरि गुरिंग गुरुनाप जइ पाय. तिरिग समय आठ वरस नउ थाय ॥ १० [ सर्व गाथा ६४ ] ॥ दूहा ॥ कुमर वध तइ ए वघ्या, अंगि लाज मुखि रूप । सिद्धि हाथे मन बुद्धि इम, विद्या हृदय अनूप ॥ १ ॥ नयन कमल दल नासिका चचु कीर मुख चद । 1 दसन जोति हीरा जिसी, वचन सुधारस कद ||२|| २२७ t कबु कंठ पल्लव करण, केलि जघ हियउ थाल । पद कच्छप नख तब मई, राता अधर प्रवाल || ३ || सीतल ससि रवि तेज गुरण, सायर गुरण गभीर । करण दाता हरिच द सत, सोबनगिरि गुरण धीर ॥४॥ गुरण सगला निज थानक, अवगुण देखि अनेक | `श्रवगुण रहित कुमर तराइ, अगि वसय सुविवेक ॥५॥ - नव नवा वागा पहिरि नइ, सुगुरण सुलक्षण जाण । गज गति चालइ मल्हपतउ, मान दीयइ राय राख ॥ ६३॥ C
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy