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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
ठम ठम चालतउ कुर्मर विराजइ, घूधरडी पाए वलि छाजइ। फेरइ लट्र चकरडी फेरिइ, फिरकडी फेरि नजरि भरि हेरइ ॥१५॥ पचेटे खेलइ सारी पासा, सोलही जाणइ खेल तमासा। पंचरंगी वजाडइ गोटा, इरिग परि रमइ धारलदे घोटा ॥१६॥ मामरणा वचत वदन सुखकारी, मात मनोरथ पूरइ अवतारी। सात वरस नउथयउ सोभागी,कुमर नइ भरिणवा नी मति जागी ॥१७
[सर्व गाथा ४६]
मात पिता सुत देखिनइ, करइ विमासरण एह । कोइंक. जोवउ पंडियउ, पुत्र भणावइ जेह ॥१॥ माता वेरिण तेहनइ, पिता सत्र, कहिवाय । छतइ 'स योगइ पुत्र नइ, न भरणावइ मनलाय ॥२॥ विधवा कन्या ठोठ सुत २, भोग काजि धन जाय ३ । वृद्धपणइ मरइ भारिजा ४, ए चारे दुखदाय ॥४॥ सभा माहि वयठउ निगुण, सगुण नयन की चोम । हंस पति जिम बक रहाउ, कबहु न पामइ सोभ ||५|| तिणि कारणि ए पुत्र नइ, जिम तिम करी उपाय। तुरत भरणाव्यउ जोईजइ, पंडित सुत सुखदाय ॥६॥
__ ढाल श्रीजी, जाति चउपई नी, राग-रामगिरी । जोसी तेडि मुहूरत जोवइ, मात पिता बहु हरषित होवइ ।। माह तणी सुदी पाँचमि सार, भणिवा मुहूरत अति श्रीकार || मेलि महाजन वाटणा कीध, ऊपरि परिघल बोल दीध। हाथ माहे मुक्थउ नालेर, अश्व ऊपरि चढयउ जिउ कुवेर रा॥ सनान मजन करि सोल शृगार, कुमर दीसइ जारणे देवकुमार। बाजइ ढोल दमामे घाई, पच सबद बाजइ सरणाई ॥३॥ . अक्षत द्रोव सोहइ मंगलीक, ब्रह्मा रहयउ जाणे नालीक ।