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________________ पं० जयकीर्ति गणि कृत श्री जिनराजसूरि राख SAGL धरम जागरीया छट्ठी राति, क्रीजइ दीजइ धन बहु भाति । इम करतों दिन श्रायउ दसमउ, थय उदसूठण करिवा नउ समउ ॥४॥ स्नान मज्जन करि अमुचि उतारी, न्याति तेडावर हिव अवतारी । श्रति सखरी करि लापसो आही, मेलि जीमाडइ लोक वेवाही ||५|| ऊपर दीजइ फोफलपान, केसरि छाटणा बहु सनमान । इजीमाडी लोक समक्षइ, नाम दीयउ खेतसी बहु हरषइ ||६|| लोक सहू मन मइ गगइता, आँप आपणे मंदिर ते पहुता । - हिव धमसी साह नइ बहुमान, पुण्यइ बाधइ वसुवा वान ||७|| भात पिता ना मनोरथ फलीया, घरम प्रसादि थया रंग रलीया । दिन दिन कुमर बधइ सुखकद, कलायइ वधइ जिम वीजिनउ चद ॥८ हरख घरी माता घवरावइ दिन प्रति कुमर नइ वलि न्हवरावइ । श्राखे काजल कानि अवगनिया, माथइ तिलक पाए पानहियाँ ॥ ॥ बाँहे बहिरखा कठइ हार, कुमर नइ सोहइ सोल श्रृगार । चादलउ करि पहिरावर वागउ, बालूडा नइ दृष्टि म लागउ || १०|| प्र ेम नजरि भरि माता निरखइ, खिरग खिरण देखी हीयडर हरखइ । कई कई कई छाती, कुमर लगावइ माता राती ॥ ११ ॥ कईयइ बयसार आपणइ खोलइ, कईयइ पालाइ राखि हीडोलइ । ! कईयइ माता, कुमर रमाडइ, कईयइ झालि ऊंच ऊपाडइ ||१२|| कईयड़ बोलावइ बाह पसारी, श्रावउ बेटा हैं तुझ वारी । कईयइ कुमर नइ माता तेइ, कईयइ कुमर नइ जाइ केड़इ ||१३|| कईइ चुबि माता पुत्रकारइ, ऊतारणउ कईयह ऊतारइ । इरि परि माता कुमर खिलावइ, अधिक प्राणद मन माहे पावइ ॥ १४ 1
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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