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________________ जिन सिंह सूरि द्वादश मास ____२२३ ढल-मेरउ मन मोहयउ, एहनी वच्छ ए वात तइ वली विमासवी मोटउ म करि प्रयासो जी। कठन कहथउ मुनि मारग जिरगवरइ, ताथइ करि गृहवासो जीवछ०॥१४॥ । सरवर निरमल त लहियां लियइ, मगसिरि रणि महतो जी।। राजहस महिमडल स चरइ ठामि ठामि विलस तो जी ॥वछ०१५।। पोषइ नवे नवे पकवानडे, सिगला लोक सरीरो जी। साकर दूध तणा गटका भला, पोष मास सुधीरो जी ॥वछ०॥१६॥ गरम खाना माह मासइ गुण करइ, तैलादिक परिभोगो जी। परम नरम पटकूल नउ पहिरवउ,सुकृत तणइ सयोगो जी ॥वछ०१७ सीत सबल निसिवासर स भरइ किरिण किय सीतल वायो जी। निस नर सबल वसन विणु वालहा, किम करि रयरिण विहायो जी ॥वछ०॥१८॥ फाग रमइ फागुण मइ सहु मिली, लाल गुलाब अबीरो जी। माहो माहि पिचरकी वाहता, भरि भरि केसूनीरो जी ॥वछ०१६ पंच महाव्रत मनसु पालिवा, नित नित निरतीचारो जो । कठिन ब्रह्मव्रत तिरणमइ परिण बहुतु, चतुर तुएह विचारो जी ॥बछ ।२०॥ ढाल मल्हारनी रायबेल रलियावरणी वछजी, मरुयइ नउ महकार । परिमल पसरइ केतकी बछ जी मास वस त उदार ॥२०॥ 'सुगरे' नान्हडीया सुख भोगवि तु स सार ना रे ॥आकरणी।। बैसाखइ वन 'फूलिया वछजी, सहु जननइ सुखकार । कूजइ कोकिल मन रली, वछजी, साख चढी सहकार ॥२२॥सु०॥ दमतां इक इक दोहोलउ, वछ, इद्री रूप गयंद। तो पाचे वसि राखिवा,वछ, जिया जीता नर वृद ॥२३॥सुा।०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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