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________________ २१४ जिनराजसूरि-कृति फुसुमांजलि सास सीम वेसास, धाम जी हिव हो मइ मिलवा तगी। मनि वीचइ छइ जेह, ते परि सगनी हो जाएइ जगि घणी ॥३॥ हियडउ वज्र समान, तुझ वेदन र ण हो जिए" पाटउ नहीं। किसउ जणानेह,x लोका यागलि होवि वचने यही ॥४|| यादव बहु+ परिवार, काम न पाव्यउ हो तुझ नइ तिगि समइ । अधिकउ सालइ दुक्ख, तिणि मन माहे हो कोई नवि गमइ ||५|| वीरा तुझ दीदार, विण दीठा किम हो मन घीरिज रहा। तुझ विरहउ असमान आगि तरणी परि हो मुझ अतरि दहइ ॥६॥ प्रभुनइ पूछइ एम, हरि कुण निदत हो नीच इसउ अछ।। मुझ बंधव नइ मारि,जीवित वछड हो पापी कुण: पछः ॥७॥ प्रभु जपइ स्यउ कोप, तिण सु जिरा नर हो ओठभउ दीयउ । ईटि वाहक नइ जेम, मारग माहे हो तई वहु गुरण कीयउ॥ इम निसुरगी सह वात, हरि हर भातई हो जारगड जिग हण्यउ। हकिम लखिस्यु तेह, नेमि जिरणेसर हो नाम नथी भण्यउ || वलि पूछइ कर जोड़ि, वधन घातक हो प्रभु किम जारणीयइ। उत्तर भासइ सामि, ससय भजक हो अतर वागीयइ ॥१०॥ तुझ नइ देखी जास, काया थावइ हो प्राण रहित खिरगइ। तेतू जाणे साच, रिषि संहारयउ हो पापीयइ तिरणइ ॥११॥ सर्व गाथा ५२२] ॥हा॥ कृष्ण नरेसर इम सुणी, वदी जिणवर पाय । वर कुजर चढि नगर मइ, जावा उद्यत थाय ||१|| सोमिल मन मइ चितवइ अधिक न्यान विन्यान । प्रभुभासइ तिरिण हरि भणी,सहु कहिस्यइसहिनाण ॥२॥ मुझ नइ कुमरण मारिस्यइ, वासुदेव ए जोर। किरण भांतइ सजिस्यइ नहीं, लाख£ करू जउ निहोर ॥३॥ बजे रहेज + सहजेथाय इणे पासइ £करसा लाख निहोर - -
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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