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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई १६६ ॥ दूहा ।। करइ विमारणसण देवकी, हैं बलिहारी ताह । भर जोवन माया तजी, सयम लीघउ जाह ॥१॥ एकणि नालइ जनमिया, जिण ए पुत्र रतन्न । रतन जनेता सलहीयड, ते जामिण धन धन ॥२॥ अनुमति देता व्रत समय, किम वही छइ जीह । जामिणी ए जायाँ पखइ, किम नीगमस्यइ दोह ।।३।। इण गति इण मति इण उगति,इरण छवि इण अणुहार । जउ क्यु छइ तउ हरि अछइ, बलि जागइ करतार ॥४॥ सर्व गाथा ७६ ढाल-५ ईसलानी* साधु बचन विघटइ नही, वेसास सहूनइ पूगइ रे । पूरव सूरज ऊगतउ, ते पिण पछिम ऊगइ रे||१||सा०॥ अमृत हालाहल हुवइ, ससिधर वरसइ अगारो रे । सुरतरु वछित आपतउ, विरचइ केहनइ वारो रे ॥२॥सा०॥ कवरण गुहिर सायर समउ, तोx पिण मरयादा मूकइ रे । कामगवी घरि दूझती, ते करम विसेषइ सूकइ रे ॥शासा०॥ सुरगिरी थिरि सिर सेहरउ, ते पिण डोलायउ डोलइ रे। पिण धरतो न 'पडिइ' किमइ,अलवइ जे मुनिवर बोलइ रे ॥४सा' अइमत्तउ अतिसय निलउ, सहुना सदेह हरतउ रे। पुर पोलास समोसरथउ, जगम तीरथ जयवंतउ रे ॥शासा०॥ मुनिवर नइ मीटइ पडी, बालापरिण वाली भोली रे। घरि आगणि,रमती छती, साथइ ले सहोयर टोली रे ॥६॥सा०॥ नील कमल दल सामला, पाठे एकणि अकारइ रे । कुलदीपक सुत थाइसी, नल कूबर अणुहारी रे ॥७/सा० क्षेत्र भरत मइ तेहवा, जणस्यइ का भवर न नारी रे । *हासला री, कर जोडि भागलि रही-ऐ देशी x ते
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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