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१६८ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि ___ ढाल-४ मोमल* 'रउ' हेड़ाऊहो मिश्री ठाकुर महिंदरी,
पहनी जाति . नयण निहालइ हो हरि करि, देवकी ते वेवे अपगार । रूप रूप ४ महो हो पानोपम संपदा,कहतां नावइ पार ॥श्त० प्रा० . निरख खमइ जे हो अनमिख जोवतां, लोचन तृपति न थाइ। कमल कमल विकसइ होतन-मन उलसइ, तरगति न+लखाइ।२ खोडि न का जोता हो मीटइ (नवि) चढइ,नख सिख सीम सरीर । आपण पइ करतइ हो करणीगरइ, कान करो तकसीर ||३|| तप तपिवउ हो विच-विच आतापना, ल्यइ नीरस आहार । पिण तिल भरि न घटइ हो तनु लवरिणमा,देव कुमर अवतार ॥४न. इण अनहारइ हो सारइ जगत्र मइ, नयण न दीठउ कोइ। भाति पडी न वली हो वीवइ. पखइ, तिरण मुझ अचरिज होइ॥५ सोभागी पिरण यादव हो भलभला, कंचरण वरणी देह । प्राख तलइ ते पिण आवइ नहीं, जउ दीठा हुवइ खेह ॥धान०॥ रूप अवर अवसर मिट्यौ पडयो, जोवो पडिस्यै माड। प्राविलाए पूरी न हुवै किमइ, अविा तरणी रुहाड़ि ॥७॥न०॥ सयपण कोई हो नही पिण उल्लसइ, हियड़उ सगपरण जेम । मुझ नइ सूधी हो समझि न कां पडइ, इम किम प्रगटइ प्रेम पन० श्रावक नउ हो चारित्रिया ऊपरइ, हुवइ छइ घरमसनेह । श्राम न कईयइ को परवस पड़इ, आवइ मन सदेह न०॥ मोहन मूरति हो जाइन मेल्हणी, नयण थया लयलीन । चोल तणी परिजे हो रातउ अछइ,किम करिस्यइ मन मीन ।।१०न. प्रापरणपइ मन सू आलोचतां, लागी खिरण इकवार। काम सरथइ स्यानइ हो ऊभा रहइ, नारि पास अरणगार ॥११शान०
• सर्व गाया ७२ मोसन हेडाक, आष न वभायो-ऐ जाति xतपो हो निरुपम +कहाइ बीव, वीजा, तिह, ऐह सवर कहिया