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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
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सावधान दीसइ तिमा, पगनउ तिस3 उपाड़। सिवपुर ए पहुँचइ सुखई, पडई नवा विचि धाड ॥२॥ 'त्रिकरण सुद्धइ तेहवा, 'दीसइ उपसमवंत । गिण्यां दिनां माहे करइ, पाठ करम नउ अत ॥३॥ लालच किणही वांतनउ, घरइ नहीं तिलभार । बार-वार नावइ फिरी, विणकारणि अरणगार ॥४॥
सर्व गाथा ४५] ढाल-३ राग सोरठी जातिमोरित्यांनी चीर' वखाणि ऐ देशी । देवकी मधुर वचने 'करीजी, वीनवई दे कर जोडि । 'उत्तम पात्र पडिलामीवाजी, कृपण पिण मन घरइ कोड़ि॥॥ - साधु जी भलइ पधारियाजी, जीवित जनम प्रमाण ।
सुंकृतनी आज जागी दसाजी, प्राज ऊंगउ भलइ भाण ॥रा स० "यन अलिकापुरी द्वारिकाजी, कनकमइ नवल प्राकार | “पार दीसइ न को रिद्धि नउजी, लोक मुदि मुदित दातार ॥३॥स० 'अतिथि प्रावी चढइ बारगइजी, जेतला राति दिन सीम । । पोषीयई नव नवे भोजने जी. कर्वहई एहवउ, नीम स०
पारकउ दुक्ख देखि केतला जी, आप न खमी सकइ जेह । ' वातनी वात माहे सहुजी, आथि ऊपाडि द्यइ तेह ॥५॥सा हति अणहुति न मिटइ लिखीजी, पिरण न कोकरह नाकार। केइ धरणी भरणी घर विवइ जी,एहवी सीख द्यइ सार॥६॥स०।। पात्र घरि प्रावि पाछउ'वर्लइजी, के कहइ ए बड़ी खोड़ि। दान देन को त्रौटइ पड़यउजी,कृपरा जोडेइ न को कोड़ि पास०॥ विरूद केह वहइ एहवउ जी, दीजियइ जा लगइ होइ।
आथि साथइ न को ले गयउजी, ले न जासी.वली कोइ॥८॥ *पन्याश्री x वीर बांदि वल वां थका बी