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________________ १५६ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि श्रीजिनवर साथै कर, अप्रतिबंध विहार । ग्रहणा ने प्रासेवना, सीख शिक्षा च्यार ||३|| तप जप करि काया कस, अरस विरस आहार। सुमति गुप्ती नित साचवे,चरण करण आधार ॥४॥ गाम नगर पुर विहरता, राजगृही उद्यान । भवसायर तारण तरण, समवसरथा वर्धमान || पुत्र रतन आगम सुणी, हरखी भद्रा मात । दीधी लाख वधामणी, कहि जिणे ए बात ।।६।। ढाल- २६ राग-मल्हार प्रोहितीयानी जाति. वे वे मुनिवर विहरण पांगुरथा रे,लई श्री वीर कन्हा आदेश रे। ए तन दुरजन विरण भाडो दियइ रे, न खिसे पग भरि सदेस रे ।१वे. मासखमण नो तुम्ह नै पारणो रे, वच्छ थासै माइडी केरै हाथि रे इण परि चवद सहस अणगार मे,सै मुख भाख श्री जिनराज रे ॥२ नप जप खप करि काया सोखवी रे,तिम वलि अरस विरस आहार रे। घर पाव्या पिण किरणही नवि पोलख्या रे, ए कुरण छै वे अरणगार रे ॥३॥०॥ जिणवर आगम सामहणी सजे रे, भद्रा नंदन वंदन काज रे। किरण कारण भिक्षु क ऊभा तुम्हे रे, भिक्षा नो अवसर नही आज रे ॥४॥०॥ माच वचन करिवा जिनराज नो रे,फिरि आव्या वलि बीजी वार रे। तो पिण पैसग न दिया पोलिय रे,रोकी राख्या घर नै वार रे ।५वे० इण घरि पैसरण नवि को दियै रे, तो स्यो विहरण नो वेसास रे। जिण घरि आउकार न आवता रे, तिण घरि सी भोजन नी पास रे ॥६॥०॥ वचन अलीक न थाइ वीर नो रे,पेसरिण परिण न लहाँ घर मॉझिरे । ए स्युउखाणी साचउ थयो रे, इक माँहरी मनि बाँझ रे ॥७॥०॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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