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________________ शालिभद्र धन्ना चौपाई १५५ तप करतो ए नान्हडो, मुझ पीहर वारेज्यो रे। उन्हाल आतापना, नीरती करिवा देज्यो रे ॥४॥क०॥ मै कालेजो माहरो, दीधो छ तुम्ह सारू रे । जिम जाणो तिम राखिज्यो, कहिवानो आचारू रे ॥शाक०॥ सीख किसी सपरीछता, कहता हुवै अवहेला रे। परिण मावीत सदा कहै, ब्रत लेवानी वेला रे ||६||क०॥ तु व्रत ले छ पालता, पणि साचे मन पाली रे। नान्हा मोटा व्रत तणा, दूषण सगला टाली रे ॥७॥क०॥ पूत पनोता सु थया, सजम लीधा माटे रे। जे तप करि काया कस, फलतो ते हिज खाट रे ||क०॥ निस भरि त्रीजी पोरसी, सूतो तृण संथारे रे। सेज सकोमल ते तजी, ते तू मत संभारे रे ॥६॥क०॥ चोथो व्रत रखवालिजे, वाडि म भंजण देज्यो रे। . चवद सहस प्रणगार मे अधिकी सोभा लेज्यो रे ॥१०॥क०॥ पर घर जाता गोचरी, मत अभिमान धरेज्यो रे । पाप मुरादौ मत रहै, गुरु नी सीख चलेज्यो रे ॥११॥क०॥ वच्छ काछलीय जीमता, मन मै सूग न पारणे रे। मत तू अोछो ऊतर, साधु तणे सहिनाणे रे ।।१२।।क०।। सीह पणे व्रत पादरी, सीहपणे आगधे रे। सो बोल इक बोल छै, आप सवारथ साधे रे ।।१३।।क०।। इम सीखामण देकरी, भद्रा फिरि घरि प्राव रे। एक घडी पिरण मात ने, वरसा सो सम जावै रे ॥१४॥क०॥ ॥हा॥ पर उपगारी परमगुरु, साधु तणे परिवार । स जम समपी सालिने, करै अनेथि विहार ॥१॥ सालि साधु चित चितवै, धन्य दीह मुझ आज । निरदूषण व्रत पालि नै, सारू प्रतिम काज ॥२॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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