________________
शालिभद्र धना चौपाई
मन मेल करि ने जगनाथ, घातिसु मुगति रमणि ने बाथि।४मे० प्रभु महथि लें संजम भार, खंप करि पालिस निरतीचार शामे० करिसु अप्रतिवद्ध विहार, लेइसुनिरदूषण याहार ॥६॥मे० पहिरसु सील सुदृढ सन्नाह, भाजिसु मयण तणो भडवाह ||७||मे. तो सरिखो साथी गज गाह, तो मुझ नै स्यानी परवाह ॥मे० बहिला हो मत लावो वार, आपण बे थास्या अरणगार मे० अनुमति लेवा नो प्राचार, तिरण ए पूछेवो परिवार ||१०||मे० धन्नो प्रावी निज प्रावास, सामहरिण सजम नउ उल्लारा ॥१शामे० सूल थकी मोडण भव पास, पहुतो वीर जिरणेसर पास ॥११॥मे.
॥दूहा ।। वचन न लोप्यो ताहरो, मै कीधो अभ्यास । हिव अनुमति द्यो मात जो सही तजिस घर वास ॥१॥ जे दिन जावं व्रत पक्ष, पडै न लेख तेह । हुं परदेसी हुइ रहयो, हिव स्यो करो सनेह ॥२॥ अाजूणो दीस तिको, कहै तिसी परि वात । तृण, जिम माया परिहरी, छोडि चलेसी मात ॥शा - मरता नइ जाता थका, राखि न सके कोय । पिण जो भास न. काढिये, तो मन डी भोहोय ॥४॥ , ढाल-२३ समय गोयम में करिस प्रमाद, ए जाति • धीरज जीव धरै नही जी, उलटयो विरह अथाह ।
छाती लागो फाटिवाजी, नय गे वीर प्रवाह रे जाया ॥११॥ . " तो विण घडी रे छमास, ,
, सास वरस किम बोलस्यइ जी, जोवो हीयइ विमासि रे जाया ॥२॥ कुरण कहस्यै मुझे माइडो जी, घडी घडी नै छेह । कहने कहस्यु नान्हडों जो, सबल विमासण एह रे जाया शातो.
हरखि न दीयो 'हालरो जी, बहू न पाडी पाइ... " ते दाँझरिण हुइ छुटिस्यइ जी, हूँ किए ग्यान गिरणाय । ४ाजा,