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जिनराज सूरि कृति कुसुमांजलि
यह पूरीत गिरती नही जी, हूँ किरण हो नं ग्यान । सिंहरिण लाखीणो जरणे जी, एको लोख समान रे शाजा
धीरप देती जीव ने जी, तुझ नै देखि सधीर । जिम तिम में वीसारयो हतो जी, मैं नरगदन रो वीर रे ||६||जा० प्रात लहरण तू माहरो जी, कालेजा नी कोर । तू वछ आधा लाकडी जी, किम हुवै कठन कठोर रे ॥७] जा० चढती तुझ मुख जोइवा जी, दिहाडा में सोवार । ते पिर भूय भार हुस्यै जो, कुरण चढम्यै चोबार रे ||८|| जा जो बालापरण संभर जी, सोयाला नी रात
तो जामरिण नै छोडिवा जो, सही न काढै वात रे |||जा बूढापरिण सुखिरणी हुस्युं जी, मोटि हुती प्रास | घर सूनो करि जाइ छे जी, माता मुकि निराश रे ॥१०॥ जा० दीसं प्राज दयामरणो जी, ए ताहरो परिवार । सेवक ने सामी पख जी, अवर कवण आधार रे || ११||जा० महल कवरण रखवालस्ये जी, कवरण करेंसी सार । एकरिण जाया बाहिरो जी, सहु सूनौ ससार रे ॥१२॥जा वछ तू भोजन ने समें जी, बेंसिस आय । माता करि लेखवो जी, तो तु छोड़ि मत जाय रे || १३ || जा० साल तरणी परि सालस्यं जी, ए तुझ नाहीठारण । प्रारण हुस्ये ते प्राहुरगा जी, भाव जारिणम जारिण रे ॥ १४जा० सुत विरह दुख मात नो जी, कहि न सके कविराज । नाणे पुत्र वियोगिरणी जी, इम जपे जिनराज रे || १५|| १५जा०
हियड
॥ दूहा ॥
सासू जी थाकी कही. हिव आपण नी वास । कहिवो छे प्रापण वसु, करिवो छे पिउ हाथ ||१|| कहिवो ऊवरस्ये जिक्यु, जारणा छा निरधार । पिरग इरण अवसर नारि नो कहवानो विवहार ॥२॥