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शालिभद्र धन्ना चौपाई
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जिम जाणो तिम एह अवधारो, खड करो बत्तीस विचारी पहिली अम्ह नै दाम दिरावी, पाछल मन मान सो करावो ॥६।। तेडि कहै साभलि भडारी, ए परदेशी छइ व्यापारी। वीस लाख सोनइया लेखै, कनक रजत आपो सुविशेष ॥७॥ कथन अपर तो मूल न प्राणो, नागो गाठइ बाँध्यो जाणौ। मुझ साथै मू को एकण ने, तिण नै दाम समापु गिरगनै ।।८।। कोठारी कोठार खुलावै, गिणवा बीजो जण बोलावै । जातो कुरा जोवे रुपईया, पगसू ठेलीजे सोनईया ||९|| हीरा ऊपर पग दे चले, माणिक कवण मजूसे घालै । पार न को दीस परवाले, काच तणी परि पाच निहाले ॥१०॥ लाखे गाने अछे लसणीया, मोती मूल न जाइ गिरणोया । इण परि रिद्धि देखी थभारणो, पाछो फिर न सके ले नारणों॥११॥ अबर दूझ भूत कमावै, आकासे हल वहै सभावै । तिण घरि ए पिरण रिद्ध न दीस, स्यु सपनौ देखु छु दोसै ॥१२॥
॥ दहा ।। माल हमाले वसि करी, डेरइ अाव्या जाम । व्यापारी बोलावि ने, रिणक भासै प्राम ॥१॥ राणी हठ मूक नही, मैं पूरेबी हाम । कबल द्यो इक मोलवी, जिम तिम देइसु दाम ॥२॥ रोक दिराव्या दोकडा, कोधी न का उधार । सोलह कबल सामठा, तिण ते लीधा सार ॥३॥ किरण सोनईया सामठा वीस लाख गिरण दीघ । कुण धनवत इसी अछ, जिरण ते कबल लीव ॥४॥ सालिभद्र भोगी भमर नवि जाणे गृह काज ।
लेवो देवो मा वसु, तीण लोधा महाराज ॥५॥ ढाल-६ राग-परजीयो, पूरव भव तुम्ह सांभलो. ए जाति श्रेणिक मन अचरिज थयो, हु बड भागो राजा रे । माहरी छत्र छाया वसे, सहुँ को दामे ताजा रे ||१| |