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________________ जिनराज सूरि कृति कुसुमांजलि । ||२|| भेना राज हुकम मगावता, मत भद्रा दुख पावै रे रोके दामी राजवी, कंवल एक मंगावै रे अतरजामी ऊपरा, जो तन धन वारीजे रे । तौ कवल नौ स्यु प्रछे, पिरण मुझ वात सुरणीजे रे || ३ || || नारी कु जर नो घसु, पहिरयाँ साथल घासे रे । तमासे रे || ४ || श्र े० तेई रे । ॥६॥ श्र० ॥ ते तो मारू धावला, पहिरे केम देव वसत पहिरे बहु, नजर न श्रावे में दे मुधा मो दिसा पासे मूक्या लेई रे ||५|| || स्नान करी ऊठी जिसे, ते नांख्या पग लूही रे | आपण जोवो जई, निरमाइल खूही रे निरमाइल किम दीजीये, कूवा माथी काढी रे । प्रवर हुकम फुरमावस्ये, ते लेस्युं माथे चाढी रे ॥ ७ ॥ ० ॥ सेवक जे मूं क्यो हतो, ते फिर पाछो श्राव रे । राजा ने राणी मिली, सगली राजा ने राणी मिली, पूरव परीठ सुरगावे रे || | सुक्त सली से रे । रण ऋद्धि उरण ऋद्धि आतरो, सर सायर सो दीसरे ||९||श्र े० ॥ जे को पहिर सकें नही, ते पग लूही नाखीजै रे । परतख देखि पटतरो, गरथ गरव किम कीजे रे ॥१०॥ ०॥ राजा अभयकुमार नै, मू के भद्रा पासि रे । करि प्रणाम ग्रावी तिसै, विनयवत इम भास रे ॥११॥ श्र० भोग पुरदर सालि नै, ए करसो नृप दरसरण देखरण अलजयो, मूंको माह ॥ दूहा ॥ भद्रा अभयकुमार स्यु, भावे श्ररिणक पास । वस्तु अमोलिक भेट, देई करें अरदास ॥१ रवि ससि देन किरणघर, लागो न धरणी पाउ । दरसरण को पावै नही, लख श्रावो लख जाइ ||२|| १२८ तेड रे । केड रे ||१२|| ||
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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