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पंचरंग कांचुरी देह आत्मा संयोग पंच तत्व की देह १.३
जउ तुम्ह अउर ठउर चित दीनउ,
तउ मोकुतजि करि गुनही ।।३।।ला०॥ छारि चलत हमरे विललाते,
किणहू अतरि गति न लही ॥४॥ला०॥ श्री 'जिनराज' वदत मुकुलीणी,
सग चली पीहर न रही ॥शाला।। पंचरंग कांचुरी देह, आत्मा संयोग, पंच तत्व की देह
राग-सारग पंचरंग काचुरी रे बदरग तीजइ धोइ।
बहुत जतन करि राखीयइ, अंत पुराणी होइ ॥५०॥१॥ - सीवणहारउ डोकरउ रे, पहिरण हार युवान । चउथउ धोब खमइ नही हो,
मत कोउ करउ रे गमान ॥५०॥२॥ कारी का लागइ नही रे, खांचि न पहिरो जाइ। बुगचइ बाधी ना रहइ रे इण कउ एह सभाइ ॥१०॥४॥ जब लगि इहु सयोग हइ हो, तब लगि हरि गुण गाइ। लघु दामी सद्गुरु कहइ हो, वेर वेर समझाइ ॥१०॥४॥
जाति-स्वभाव अज्ञानी शिक्षा कहा अग्यानी जीउ कु गुरु ज्ञान वतावइ । कबहु विष विषधर तजइ, कहा दूध पिलावइ॥०॥१॥ ऊपर ईख न नीपजई, कोऊ बोवन जावइ । रासभ छार न छारि हइ, कहा गग न्हवावइ ॥२॥क०॥ कालो ऊन कुमाणसा, रंग दूजउ नावइ ।