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रामायण सम्बधी पद (१) मदोदरी वाक्यम्
राग-सामेरी मंदोदरी बार बार इम भाखइ। दस' सिरि अरु गढ लका चाहइ,
तउ परस्त्री जन राखई ॥१॥मं०॥ पलटयउ दिवस विभीषण पलटयउ, पाज जलधि परि झाखड । बोवइ पेड़ आक के आगण, अब किहा थइ चाखइ ॥२०॥ जीती जाइ सकइ नही कोउ, वाणि एहि जगि आखइ। 'राज' वदत रावण वयु समझइ, होणहार लकाखई ॥३०॥
(२) मदोदरी वाक्यम्
राग - सामेरी आज पीउ सुपनइ खरी डराई।। जलधि उलंधि कटक लंका गढ, घेरयउ परी लराई ॥१आ०॥ लूटि त्रिकूट हरम सब लूटी, त्रूटी गढ की खाई । लपक लंगूर कगुर बइठे, फेरइ राम दुहाई ॥२॥आ०|| जउ दस सीस बीस भुज चाहइ, तउ तजि नारि पराई । 'राज' वदत हुणहार न टरिहइ,
कोरि करउ चतुराई ॥३॥आ०॥
१- जो दस सीस वीस भुज चाहइ.