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श्री सती सीता गीतम्
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हु अबला निरधार जी०,
___ कीडी ऊपरि कता कटक न कीजीयइ रे। जउ तइं जाण्यउ दोष जी०,
लोक हजूरइ धीजइ साच करीजीयइ रे ॥५॥ एकलडी वन माहि जी०,
इण वेला मुझनइ तुझ विण कुण साहरइ रे । कहीयइ केहनइ साथ जी०,
__ मन की बात रही मन माहि माहरइ रे ॥६॥ आपण आदरीयाह जी०,
नवि ऊभगियइ तउ ते नेह सराहियइ रे। उत्तम एह आचार जी०,
जिण मीटइ मिलियइ तिण अंत नीवाहीयइ रे॥७॥ बार वरस नइ अत जी०,
धीज करण 'सीता' वहि आवी मनरली रे । राखी जगमइ रेख जी०,
___ नारि जाति सुविशेषइ कीधी ऊजली रे ॥८॥ सोनइ सामन होइ जी०,
सील प्रभावइ ते साची सोभा लहइ रे । धन धन सीता नारि जी०,
इण परि मन रगइ मुनि 'राजसमुद्र' कहइ रे ।।६।।
- इति सती सीता गीतम्