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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
सेजन रे ए जनकेश सुता अछइ ॥ पुगउ न आलोच रे तइ कीयउ करम आसोच रे। सोचन रे लोचन भरि करिस्यइ पछइ रे ॥४॥ तिरण कीया कोडि जतन्न रे, राखिवा सील रतन्न रे। रतन्न रे मन्न-न चूकउ जेहनउ रे ॥ आदरथउ श्री 'जिनराज' रे, धोजनउ सीता साज रे। साजन रे आज नवल जस तेहनउ रे ॥५॥
___ श्री सती सीता गीतम् लखमणजी रा वीर जोहो जीवन जो हो जी,
दशरथजी रा नदन कांइ मुझ परिहरो जी। सास तणो परि खिण खिण पीउ पीउ सभरइ रे,
तुझ विरहो न खमाई जी ॥१॥ तू मुझ प्राणाधार जी०,
चतुर सनेही लाल राचि न विरचियइ रे । झटक न दीजइ छेह जी,
आगलि पाछलि वात विमासियइ रे ॥२॥ बहिनी घालइ घात जी,
लहि अवसर अणहूँता अवगुण पिण कहइ रे । पर घर भंजा लोक जी०,
नित नित नवलउ नेह तिके किम सांसहइ रे ॥३॥ वीसरिया दिनतेह जी०, हु वनवासइ आवी हुतो एकली। अवरि सहू ए नारि जी०,
प्रीतम दउलति री माखी आवी मिलि रे ॥४॥