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७८ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि भरि योवन इक सेज कउ सोवन,
किसन सुकल पखि ब्रह्मचारी ।।१धि०॥ आर्छ जाम रमे मन माने, दाव परइ न मरइ सारी। काजल वीचि रहास' रयण दिन,
लागइ रेख न का कारी ॥२साध०॥ प्रिया तरती अपणउ प्रीउ तारयो, तरतइ पीउ प्यारी तारी। 'राज' वदति कलिके जोगीसर,
तापरि सिरि वारु डारी ॥३॥ध०॥
श्री दमयन्ती सती गीतम् । __ छोडि चल्यउ 'नलराइ', निसि भरि सूती 'दमयन्ती' सती ।
नवल सनेही नाह, नयण न देखइ ते जागो छती ।।१।। ए मन मोहन नाह, नगीनउ किहां गयउ । ए मन मोहन माहरउ, प्रोतम मिलिवा अलिजयउ ॥०॥ साद कीयां दस वीस, पाछउ दीधउ साद न को कीयई । प्रीउ प्रोउ करइ पुकार, प्रेम विलूधी उलंभा दीयइ ।।२।।ए०॥ कामिणगारइ कंत, मुझनई सीख न का चालतइ कही। दरसण आइ दिखाइ, हासइ री वेला हिवणा नही ॥३॥ए। मइ विरहउ न खमाइ, सास तणी परि खिण खिण संभरइ । जेहसु निवड़ सनेह, ते तउ वीसारथा नवि वीसरइ ॥४ाए। नेहा नह अपार, जे जडि धालि चल्यउ उर अतरइ। लाख मिलइलोहार,तउ पिण ते जड़ किम ही न वीसरइ॥५ए० अवसर वोल्या बोल, सालइ साल तणी परि माहरइ ।
१ रहत, २ (वाके) नख शिख परि डारुवारी