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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
तउ परदेसी मीत ज्यु धोटा, ऊठि चलेसी प्रारण घोटा ॥४॥ अउर नेह सो कारिमउ धोटा, जे छिरणमइ पलटाइ धोटा। नाडिन चोरइ नातरउ घोटा,जउ वरिसा सउ जाइ धोटा ॥५॥ अजहु भलहु न रूसगउ धोटा, आप विमासी जोइ धोटा। पहडइ पेट जउ आपणउ धोटा,
तउ कलिहु थल होइ धोटा ॥६॥ छगन मगन कइसे भए धोटा, अइसे निपट निठोर धोटा । मुनिजन कीनी मोहनी धोटा, तकत न मेरी ओर धोटा ॥७॥ मन की बात कहा कहु धोटा, जाणत सिरजणहार धोटा । करि मीनति इतनउ कहु धोटा,
आइ मिलउ इक वार धोटा ||८|| देखि 'सुनदा' उनमनी धोटा, चितवत 'वइरकमार' धोटा । अव जउ मईया सु मिलु घोटा, बहुत वधइ संसार धोटा ॥६॥ कव लगि कठिन विरह सहुधोट,
तजि अगज सी आय घोटा। पंच महाव्रत आदरे धोटा, 'राजसमुद्र' प्रभु साथ धोटा ॥१॥
___ इति श्री वइर कुमार गीतम्
__ श्री अमत्ता ऋषि गीतम् दीठा गोयम गोचरी जी, जाग्यउ नवलउ मोह। पडिलाभी साथइ थयउ जी, जिण वयणे पडिबोह रे ॥१॥ मुनिवर वंदियइ, 'अइमत्तउ गणवंतो रे । वीर प्रशंसियउ, धन धन साधु महतो रे ॥२॥मु०॥ नवि जाणु जाणु सही रे, माताम करि सनेह ।