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- श्री शालिभद्र गीतम्
भोगी भमर निहालि, महल थकी ऊतर पाए पड़इ ॥६॥ए०॥ खमिज्यो मुझ अपराध, हूँ पापी अपराधी ताहरउ । थोडी वेला माहि, माइडी काज समारउ माहरउ ॥१०॥ए०॥ पउढउ पूत्र रतन्न, ताती लोहसिला इण ऊपरइ । तहत करइ सुवचन्न,रिषि अणसरण माइड़ी मुख ऊचरइ । ११ए. पधलइ माखण जेम, नान्हडीयइ अधिकी वेदन सही। ऊभी माता पास, हुलरावइ च्यारे सरणा कही ॥१२॥ए०।। चउरासी लख जीव, योनि खमावी कसमल ऊतरइ । साची माता ऐह, दुर्गति जातउ नंदन ऊधरइ ।।१३॥०॥ अरणसण निरतीचार, आराधी अरहन्न सुर सुख लहइ । धन धन साधु महन्त,
इण परि 'राजसमुद्र' मुनिवर कहइ ॥१४॥ए।।
_श्री वहर कुमार गीतम् मइ दस मासि उरि धरयउ धोटा,ह तेरी मात कहाधोटा। नइकु नर्जार भरि निरखियइ धोटा,
मइ तुझ परि वलि जाउं धोटा ॥१॥ घरि आवउ रे मनमोहन धोटा, मेरइ मनि तू ही वसइ धोटा। अउर किछू न सोहाइ धोटा, दिन इत उत ढांढी रह धोटा, रयरिणदुहेलो जाइ धोटा ।२१०. तू जीवन तू आतमा धोटा, तू मुझ प्राण आधार धोटा। तुझ विरण पलक न हु रहुधोटा,
तउ क्यु जाइ जमार धोटा ॥३॥ जउ तइ कबही अवगरणी धोटा, करि लोगरण की कारण धोटा।