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( १६ ) जाणे मेल पर्वत शृंगु, एहवउ गरि स्वर्ण्यमय कलश नउ रंगु । लोह धातु, लक्ष्मी गंजातु। वर्म व्वजानु चिहु पखेर कोठरी, कोसीसे करी आकाशि अड़ी, सुधा करि धवलितु। विविध बाटि करी तारूबार, एवं विध निन विहारु । सकल पणइ करी महा स्फूर्ति, माहि माडी वीतरागनी मूर्ति । परिगर करी शोभायमान, छत्र त्रय करी नइ विराजमान । अाठ मागलिक मडाणा छइ, पुण्यवत पूजा करइ छई ।। प्रासाद वर्णन ॥ ३६ ॥ जै० (मु०")
२८ स्वयंवरा मंडपुचउदिसि माच, हेठि रत्नमय भूमिका, स्वर्णमय स्तम, ऊपरि पचवर्ण देवाशुक तणा अलोच, तलिया तोरण जमविया, खेत चगर लबाविया, फूलमाला लावावी, सिखरि प्रारीसा झलकइ, गगनि चिंछ पताका झलहलइ, अच्छारायणु, इसउ जसउ देव निमियर तिस्तु मडपु । (पु० अ०)
२६ वाडी वर्णन बीजउरी ना अखाडा, नौबुइना वृक्ष लक्ष, नवरग नारगि। द्राख मंडप, जोइवाजिससी जंत्रीरि, दीठी हाथ उपशमइ तिसी दाडिमि फूल्या फ्णत करणी नी कोटि केलि वृक्ष असख्य अनेक विध आवा रूढ़ि रायणि चार वृक्ष रसाल नक्षथ लगइ वाधीना नीलिएरि पान वारी प्रगटक खारिक खरि वडोरि वोरि फूटी फोफलणी गूंद नरीना गंजा इसी वृक्ष अलंकारी वाडी ॥ ३५ ॥ (मु०)
३० आराम-वर्णन (१) नारिंग, लवंग, प्रियंग । - पूफ, पुन्नासा, नाग, मागधी । घव, अर्जुन, सर्ज, खर्ज। . गलूर, वीजपूर, ऋतमाल, तमाल । नत्त माड, प्रियाल, ताल, हताल, श्रीताज । चंपक, सहकार, तगर, अगर !