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लोग काम चूर्फ छइं, पंथीमार्ग मूकै छई।
तावड़ो लुफैं छई, कंठ सूफैं छई।। पर इसके उत्तरार्द्ध में गर्मी से बचने के लिये श्राभिजात्य वर्ग द्वारा प्रयुक्त उपकरणों का वर्णन है। वर्षा :काल के ५ वर्णनों में लगभग समानता है। लगभग सभी में काली घटा उमड़ने का, धारासार वर्षा का, मेढकों के बोलने का, जलप्रवाह बहने का, पथिको की यात्रा रुकने का वर्णन है। कहीं कहीं वर्षा से मकान गिरने, 'छप्पर टपकने, हरियाली होने, मोर नाचने, किसानो के हल चलाने श्रादि का वर्णन भी है। ___ 'सभा शृंगार' में अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुअा है। गद्यमय तुफात होने के कारण अनुप्रास तो लगभग सर्वत्र ही मिलता है। कहीं कहीं उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा श्रादि अल कार भी पाए हैं। 'सभा शृंगार' का विषय और उसका उद्देश्य बौद्धिकता से सबधित होने के कारण जो अलकार पाए हैं के सहज रूप से ही श्रा गए हैं। राजसभा में बैठे हुए राजा की शोभा का वर्णन करते हुए निम्न प्रकार से उपमा दी गई है -
सभा माहि राजा बइठा थको सोभइ छै ते केहवोअक्षर माहि जिम ओंकार, मत्र मांहि ह्रींकार । गंधर्व माहि तुवर, वृक्ष माहि सुरतरु । सुगंध माहि निम कपूर, श्रोत्सव माहि निम तूर । वस्त्र माहि जिम चीर,........ वाजित माहि जिम त्रंभा, स्त्री माहि जिम रंभा । शास्त्र मांहि जिम गीता, सती माहि जिम सीता । देव माहि जिम इद्र, ग्रहा माहि जिम चंद्र।
द्वीप माहि जिम जंबू द्वीप, प्रदीप माहि जिम रत्न प्रदीप । 'सभा शृंगार' किसी एक व्यक्ति की रचना न होकर कई वर्णन ग्रंथों का समूह है अतः उसमें भाषा का भी एक रूप नहीं है। कहीं संस्कृत, कहीं अपभ्रश, कहीं व्रजभाषा, कहीं गुजराती और कहीं मारवाड़ी का रूप होने के कारण पाठक के लिये भी यह आवश्यक हो जाता है कि वह उपर्युक्त भाषाओं का ज्ञाता हो अन्यथा उसे वर्णनो को सम्यक् प्रकार से समझने में. कठिनाई हो सकती है। कहीं कहीं अरबी फारसी के भी शब्द पाए हैं। ऐसे शब्द विशेषत: मुस्लिम काल से प्रभावित वर्णनसूचियों में हैं। -