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फठिन है। यदि थाली फेंकी जाय तो वह सब लोगों के सिरों के ऊपर ही तैरती रहे, नीचे न गिरे
चौरासी चौहटा भीड़, मनुष्य शनै शनै फिरै । हिइ हिई दलै, हारइ हार त्रूटै । पूर्वी पूठ मिले, वाहे बाह घसाइ । सास न लिवराइ, धड़ाधड़ हुई। तिणखलो धरती पड़ि न सकै, दृष्टि फेरवी न सके।
याली माथा ऊपर तरै, इम अनेक भीड़ हुई। नगरवर्णन के उपरात वहाँ के लोगों का, घरों का, प्रासाद का वर्णन किया गया है और बाद में अनेक प्रकार के वृक्षो, पक्षियों, चतुष्पदों, कीटों व पर्वतों के नाम गिनाए गए हैं। इनका वर्णन प्रायः रूढ है। इनके बाद सरोवर व पनघट का वर्णन करके नदियों व समुद्रों के नाम देकर इस विभाग को समाप्त किया गया है। सरोवरवर्णन में तो विशेष रमणीयता नहीं है पर पनघट का जो चित्र अंकित किया गया है वह स्वाभाविक होने के साथ साथ श्राफर्पक भी है। राजस्थान मे जहाँ पानी का प्रभाव होने के कारण दूर दूर से जल लाना पड़ता है, इस प्रकार का दृश्य किसी भी पनघट पर देखा जा सकता है। पानी भरने के लिये भीड़ हो रही है। कोई तेजी से दौड़ रही है, कोई सिर पर वेहड़ा रख रही है, कोई किसी से टकराकर गिर रही है। कभी कोई स्त्री दूसरी स्त्री की साड़ी मिंगोकर उल्टे उसी से लड़ रही है। मोटे अंगवाली तो गाली दे रही है और दुर्बल अंगवाली वैसे ही श्रप्रसन्न हो रही है । सास भी बाद में उन्हे बुग भला कहती है
बईरां नी भीड़, हुइ पीड़, जूटें चीड़। एफ ऊतावली दोडे छै एक माथै वेहई चौहडे छ। लूगुंडु ते मार्थं श्रोछई, बेहड़ों ते फोड़े छई । एफ एक नै अडै छई धडाधड पडै छई। माहो माहि लडे छई ।। हवें नान्ही लाडी, चीखल थी पड़ें श्राडी। वीनी नी भींचाइ साडी, ते माटेइ करे राडी। सोक सोफनी फर चाडी, ढीले नाडी। खीने माडी, सासई पाछी ताडी ।।