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ऐतिहासिक घटना हो तो उसका वास्तविक स्वरूप समझने में भी सहायता मिलती है, यथा ७ वें युद्धवर्णन से जो फालिकाचार्यकथा से लिया गया है। इसमें कालिकाचार्य का गईभल के साथ युद्ध का वर्णन है। युद्ध श्रारंभ होने से पूर्व जीते जी मैदान न छोड़ने की सौगध ली गई -
श्रामल पाणी फीधा, मानण रा । स लीधा । पर नत्र युद्ध में कालिकाचार्य और उसके दल की विफट मार पड़ी तो विपक्षी दल के लोगो की चे दशा हुई उसका वर्णन इस प्रकार किया गया है
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फाबलि मीर, नखह तीर । लागी खडा खड़, वागी भड़ाभड़ि । गभल्लरी फौज भागी, सवल लीक लागी । जे हूँतो सेनानी, ते तो धूरखी थयो कानी । जे हूँतो कोटवाल, तेचो भागतो ततकाल । जे हूँतो फौजदार, तिणरै माथै पड़ी मार । जे हूता चौरासीया, ए दाते त्रिणा लीया ।
जे हूँता खवास, तीर जीव वा री मुंफी पास । युद्धवर्णनो के पूर्व विभिन्न प्रकार के शस्त्रों, गज, अश्व, ऊँट, रथ श्रादि का वर्णन किया गया है। शस्त्रों के वर्णन नहाँ सूचीमात्र हैं वहाँ गन, अश्व, ऊँट श्रादि के वर्णन में उनकी विभिन्न जातियों व श्राकृति का भी वर्णन किया गया है।
नायिका के अंगों का, उसके श्रामरणों का और सुष्टु स्वभाव का वर्णन शृंगार रस की निष्पत्ति में सहायक होता है। पर सभा शृगार में सुन्नी के अतिरिक्त कुस्त्री के जो वर्णन है वे रति के स्थान पर जुगुप्सा भाव उत्पन्न करते हैं। विरहिणी के दो वर्णन है । दोनों में ही वियोगिनी की मानसिक दशा के साथ उसकी उद्वेगजनित क्रियात्री का वर्णन किया गया है। विरहदशा में भोजन से विरक्ति हो जाती है और सब प्रकार के शृगार विरहिणी को अंगारवत् प्रतीत होते हैं। चंद्रमा की शीतल चाँदनी उसके-लिये वृष राशि के सूर्य के समान दग्घकारी हो जाती है। वियोग की याग से उसका शरीर मलता है और सहेलियों का साथ उसे नहीं सुहाता ---..