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( २६८ ) एक सीहु, पाखर लीहु। 'एकु श्रागइ धण माकणी, पगि बाधी काकणी। एक ऊमाही, अनड मोर हीलव्य। 'एकु क्षोरान्नु, अनइ मर्करा सपर्छ । एकु मधु अनइदादा क्षेपु, एकु प्रेयसी अनह गुणवतो। एकु विद्वांसु अनइ विनीतु, ए वन्तु किंहा लाभह ॥ ६७ ॥ (मु०)
(६५) द्विगुणित शोभा (३)
हरि, अनई श्रावो घरि । एक इष्ट अनई वैद्योपदिष्ट । एक सुवर्ण अनई सुगघ । ग्रेक सीह अनइ पाखरिउ । अक घृत परिपूर्ण अनई निक्षिप्त शर्करा चूर्ण । एक शालि दालि परिसी सुवर्ण थालि । अक रूपवत अनई कामदेव सदृश लहकत । श्रेक ऋद्धि कलित अनइं दान करी अस्खलित । ओक योद्धार अनई शस्त्रे अजित । अक वसत नइ परि प्राविउ कत । ओक यौवन भर अनई चच्चरि घर ।
( स० २)
(६६) निकृष्ट पदार्थ (१)
वृषभ मारीकणउ, ठाकर चूकणड, हाथिउ नासपाउ । तुरगम काढणउ, मृत्यु रूसणउ, स्त्रीजनु बोलणउ । दूरि बर्जेवउ ।
(पू० अ०)
(६७) निकृष्ट पदार्थ (२)
पाछी छासि केतलउएकु पाणी खमइ, पातली छाया केतुएकु आतप गमह । कातर केत एकु रणागण जूझह, निरक्षर केतुएकु कहिउ बूझह । . कृपणि केतउ दानु दीजइ, अपराधि केतउएक तपु कीजइ। आदि केतउएक तरु वाजइ, कारिमउ नेहु केतलउ एक छानइ ।