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(८०) मन मन' चपल चचल, देवताए पुण घरी न सकीयई। क्षणि हिं जायइ सागरि, २०२ आगरि । क्षणहिं नदी-परि-सरि २० सरोवरि । क्षणहिं नगरि, क्षणहिझगरि । क्षणहिं अंबरि, १० भूधरि । क्षणहि पातालि५, क्ष० कुद्दालि । क्षणहि भूतलि, क्ष० कुतूहलि कुंभकार चक्रवत् । मन एव मनुष्याणां कारण बंध मोक्षयोः । बंधस्तु विषया सगे मुक्तिर्निविषय मनः ॥ ८६ ।। जो.
(८१) ससुराल की स्थिति वच्छे सासुरा तणी इसी स्थिति जाणिवी । सुसरउ अवेषइ, जेठ नीचउ देखइ । वर पुण लड़ह , देवर नडइ । जेठानी कुसइ, देवरानी हसइ । नणद नर-नरावइ, सासु काम करावइ । +
(८२) विशिष्ट पदार्थ
(१) लीला तउ महेश्वर तणो, सृष्टि तउ ब्रह्मा तणी। प्रना तउ वृहस्पति तणी, प्रतिज्ञा तउ राम तणी। त्याग तउ पाधि पति तणउ, पवनवेग तउ हनुमत तणउ । मान तउ दुर्योधन तणउ, तेन तउ सूर्य तणउं । परिमल तउ पारिजात तणउ , निर्मलता तउ गंगा तणी । विवेकता तु नारायण तणी, बल तउ सुद्रिका वीर तणउ । .. सम्यक्त्व तउ श्रेणिक तणउ, ऋद्धि परिहारू तउ श्री शातिनाथ तणउ । अभय दानु तउ श्री शातिनाय तणउ, शील.तउ श्री स्यूलिभद्र तणउ ।
१. मनु दइवि २. क्षणिजाइ ३. द्वीपान्तरि ४ मगटि ५. कुहिली ६. पातालोदरि ७. भूतलाभ्य तरि ८. तणा चक्र तणी परिफिरतउ अछइ ६. अवद्ध ठइ १०. वरदतुः २१. भिडइ + सुख कहाछइ (अधिक पाठ) .