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चचल वित्तं अतएव सुपोने नियोज्यं । यतः-- उत्तम पत्त साहू मझिम पत्तं च साचया भणिया । अविरय सम्म दिठी जहन्न पत्त मुणेयव्वं ॥१॥ व्याजेस्या द्विगुणं वित्त व्यवसाये चतुगुणं । क्षेत्रे शत गुणं प्रोक्तं, पात्रेनंत गुण पुनः ॥ २ ॥६२ जो० ।
(७६) चंचल वाक्य
जेहवउ चंचल कुजर नउ कान, पीपल नउ पान । सध्यानउ वान,
दुहागणनउ मान॥ विपहर नी छाया,
रावणनी माया ।। गोदतीनी वाट
माटीनउ घाट ॥ रावनउ घेउ,
राकनउ भउ ।। बादतनी छाह,
कापुरुपनी बाह ।। आढनउ तूर,
पर्वताश्रिनदीनउ पूर ।। वैद्यनउ पंडीगणउ,
सूपडा नउँ ठीगणउ ॥ इन्द्रनाल नउ पेषणउ,
स्वाननउ घीवणउ ।। छालीनउ ऊम,
स्त्रोनउ गूझ ।। दासीनउ स्नेह,
ऊन्हालू मेह ।। ठारनउ बेह,
धूलिनी वेह वेकीय देह, ॥ जेहवउ चचल बीजलीनउ '
मधुबिंदुश्रा नउ टवकर, झबकउ ॥ मोईनउ हेज,
जेहवी खजूया नउ तेज . पाणीतणौ तरंग,
पतंगनउ रंग ॥ माकडनउ विषाद,
। रामनउ प्रसाद ।। जिसी चंचल स्त्रीनीजाति,
उन्हालू राति ॥ त्रिणानी आगि,
दुर्जननउ रोग | जिसउ चंचल मन
निसउ चंचल परेवन। जेहवउ चंचल तुरंगम, तेहवउ चंचल धोर संसारनउँ सगम ।
इति चंचल वाक्यानि।