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६. नातिन और बधे ७. देव, वेताल श्रादि ८. जैन धर्म मुन्धी ६. सामान्य नाति वर्णन १०. भोजनादि वर्णन
वर्णकसाहित्य में वन्तुयों के विभिन्न नामरूपों का वर्णन होता है। इस प्रकार का वर्णन लेखक के शानभडार की तो मनना देता ही है, साथ ही पाठक वा श्रोता भी उसे अपने ज्ञान की वृद्धि कर लेता है। इन वर्णनों के द्वारा पाठक के समक्ष एक चित्र उपस्थित हो बाता है और वह वर्य विषय को सरलता से ग्रहण कर लेता है। हम प्रकार फा परिनिष्टित
और रूढ़िगत रूप हमारे मस्तिष्क की बौद्धिक चेतना को तो उद्बुद्ध करता है पर वह हमारे हृदय की मार्मिकता को सजग करने में अधिकारातः असमर्थ रहता है। पर वर्णकसाहित्य के सभी लेखक समान नहीं होते। उनमें से कुछ कविहृदय होते है और उचित प्रसंग पाकर उनका अंतर भावुकता के साथ विषय का चित्रण करने लगता है। 'सभा शृगार' भी इसका अपवाद नहीं। इसमें अधिकांशतः वस्तुओं के नामलों का ही वर्णन है पर कहीं कहीं फाव्यछटा के भी दर्शन होते हैं ।
साहित्यिक दृष्टि से सभा शृगार का 'युद्धवर्णन' उत्कृष्ट है। इसमें स्वामाविकता के साथ साथ रसमन करने की शक्ति है। यह वर्णन या तो लेखकों ने पूर्व ग्रंथों के आधार पर किया होगा अथवा यह भी संभव है कि उनमें से किसी की व्यक्तिगत अनुभूति इसमें अभिव्यक्त हुई हो। पंथ में ७ युद्धवर्णन हैं। इनमें परस्पर कुछ न कुछ समानता होते हुए भी भिन्नता है। प्रथम युद्धवर्णन के श्रारंभ में दोनों दलों की सेना के मिलने पर लो दृश्य उपस्थित हुत्रा उसका चित्रण किया गया है। जब दोनों ओर की सेनाएँ भिड़ गई तो चारों ओर रेत ही रेत छा गई । उससे अंधकार हो गया और वातावरण की धूमिलता के कारण अपने पराये का भी ज्ञान न रहा । इसके बाद युद्ध का वर्णन किया गया है । कहीं कहीं श्रारंम में युद्ध के वाब बचने और वीरों के सजने का वर्णन है यथा चतुर्य युद्धवर्णन में
वीर मादल वाज्या, सूर साज्या । जय ढक वाली, नीसत नीकली गया तानी । त्रंबक- त्रत्रहायड, नेजा लहलहायइ ।