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(२३४ ) यदि वृहस्पतिर्मतिहीनो भवति तदा को मति' दास्यति ? यदि चन्द्रादगार वृष्टि भवति तदा को रक्षकः ? यदि वाटिका चिर्भटाना भक्षति तदा को रक्षकः १ । ८४ जै.
(२६) यदि ऐसा हो तो कोई उपाय नहीं (२)
जो राना चोरी करे तो बाजो कुण राखें जो सत्यनत खोटु भाखें तो बीजो कुण न भाखें । जो चन्द्रमा शीतल न होड तो बीजो कुंण शीतल होइ। जो सूर्य अधकार न निवारे तो बीजो कुण निवारे यदि सारटा सदेह न भाजै तो बीजो कुण भाजै नो वृहत्पति मतिहीन तो बीजो कुण मति देस्ये जो शेषनाग धरती मूकइ तो बीजो कु ण धारस्ये जो समुद्र मर्यादा मेले तो बीजो कुण गखें जो श्राकाश पडे तो बाजो कुण थमे ।। जो सजन उपकार रहित तो बीजो कुण उपकार करें ।। जो लक्ष्मी भंडार तोडस्ये तो बीजो कुण भरस्वै इत्यादिक जाणवौ ।। पु०॥
(२७) यदि ऐसा हो तो कोई उपाय नहीं ( ३) यदि राजा चोरी करोति तदा को रक्षकः । समुद्रस्य तृष्णा कः स्फोटयति । यदि हिमाचलः शीतेन म्रियते तटा कि दृग प्रवरणं । यदि सहस्त्राक्षो न पश्यति तदा कि गुपचारः। यदि सरस्वती सदेह न भजति तदा को भजति । यदि लक्ष्मी भाडागार द्रव्यं सात्रोट तटा कः पूरयिष्यति ।
२-पृथ्वी २-दक्ष 'पु०' प्रति में यह पाठ अधिक हे
यदि लक्ष्मी भढागारे द्रव्य सत्रुट तदा क पूरयिष्यति। यदि सत्पुरुष उचित रहित. तदा की शिक्षा दास्यति ।।