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प्रस्तुत ग्रंथ का संपादन- इनमें से जितने ऐसे ग्रंथ राजस्थानी गद्य में प्राप्त हुए उनकी प्रतियों को कई ज्ञानभंडारों से मँगवाकर विषय वार वर्गीकरण करके इस ग्रंथ में दिया गया है। पहले ऐसी रचनाओं को मूल रूप में अलग अलग प्रकाशित करने के लिये उनकी प्रतिलिपियों की गई पर बहुत से वर्णन एक दूसरी रचना में समान रूप से मिलते थे इसलिये उस रूप में प्रकाशित करने से बहुत अधिक पुनरावृत्ति होती । ग्रतः पुनरावृत्ति न होने और उपयोगिता को बढ़ाने के लिये प्रत्येक वर्णन को अलग अलग लिखवाया गया फिर समान वर्णनवालों का पाठ मिलान कर पाठभेद लिखा गया और उन्हें लमबद्ध करके १० भागों में विभाजित किया गया । इस कार्य में कई महीनों तक कठिन परिश्रम करना पड़ा । इसलिये ग्रंथ को तैयार करने में अधिक समय लग गया और फिर मुद्रण में भी देर होती रही । फिर भी पाठकों के समक्ष इस रूप में रखते हुए, किंचित् संतोष का अनुभव होता है ।
श्राभार -- इस कार्य में श्री भँवरलाल नाहटा, ताराचंदजी मेठिया, नरोत्तमदास जी स्वामी और श्री वदरी प्रसाद जी साकरिया मे बड़ी सहायता मिली है । श्री वासुदेवशरण जी अग्रवाल ने भूमिका लिखकर मुझे बहुत उपकृत किया है। श्री चद्रमेन जी मोरल ने इसके माहित्यिक सौदर्य पर लिखा है । ना० प्र० सभा काशी ने इसे प्रकाशित किया है । एतदर्थ तभी सहयोगियों का मैं हृदय ने श्राभारी है ।
अगरचंद नाहटा