________________
(१६७) चतुरस्त्र संस्थान, वज्र, ऋषभ, नाराच, ४ प्रधान परम सौभाग्य सहित वलिपलित विवर्जित, अशिक्षित सर्व कला तणा जाण । केवलउ पुण्य नउं प्रमाण । जन्म माहि रोग, शोक, दु:ख, जरा, मरण छीक, , बगाई, ऊपमरण, अल्प कषाई, ऊपनइ देव माहि । तेह माहि कुण हूँ न स्वामी, न दास, न मूक, न ऊमसूक, न बधिर, न विधुर, न कूबड़ा, न वामणा, न हुँठा, न छोटा, न पागुला, न अाधुला, तिहा डास मुमा माकुण जू, प्रमुख न उपजई। साकर पाहिइं धूलि ना सुस्वाद अनत गुणा पूजाइ । ए इस्या सुख सत्पात्र दानिइ युगलिया लहइ । कुपात्र दान लगिइ पट्ट हस्ती, पट्ट तुरगम थाइ । अधिकी सद्गति न जायइ । अनई अभय कुमार जिम च्यारि बुद्धि धर्म प्रभावह लाभइ , अनइ धर्म नई प्रसादिई लक्ष्मी वृद्धि, कुटुंब वृद्धि, स्वजन परिजन वृद्धि, गन तुरंगम, वृषभ, रथ धण, ढोर, वृद्धि हुई । देखउ तुम्हे अशोक माली नव पुष्पनी पूना लगह नव भवे क्रमिहं नव द्राम लक्ष, नव द्राम कोडि, नव स्वर्ण लक्ष, नव स्वर्ण कोड़ि, ४ नवरत्न, लाख ५ नव रत्न कोड़ि ६ नव ग्राम लाख ७, नव ग्राम कोडि ८ तणउ स्वामी हूयउ । श्री पार्श्व कन्हइ दीक्षा लेई, अनुत्तर विमानि गउ, तेउ मोक्षि पुण लाइ सिइ । इम धर्म नइ प्रसादि धर्म-वृद्धि संप इ । श्रनइ धर्म समृद्धि ऊपनइ, अत्रुट अक्षय लक्ष्मी चिंतामणि, दक्षिणावर्त शंख, सौवरणं पुरिसा नी सिद्धि, अभीष्ट मत्र सिद्धि, अचिंतित देवता वर, अद्भुत निधान, लाभ, राज सन्मान, उचित दान, एइसि अनेक समृद्धि होह, अनइ न ज वाछिइ इष्टार्थदुस्साध, सर्व कार्य रूप सौभाग्य अद्भुत भोग महा सुख, ते ते सहू धर्म महात्म्य लगड, नीपनउ हीज दीसइ, अनइ विघ्न क्षुद्र उपद्रव, रोग, हानि दारिद्रय दुःख, शोक, चिन्ता अरति प्रभृति अनिष्ट कोई धर्म लगइ न सम्भवई । घणुं किस्यु कहोयह एह धर्म लगई, अनंत सौख्य, मोक्ष पुण्य लहियइ । एह भणी तुम्हें पूना प्रभावना दान शोल, तप, भावना, अमारि प्रवत ना, तीर्थयात्रा, सामायिक, पौषध, सवेग, वैराग्य, परोपकार प्रमुख पुण्य कार्य नह विषइ तिम उद्यम करवउ निम उत्तरोत्तर सकल मंगलीक माला पामउ । यतः -पुंसा शिरोमणियंते धमार्जन परा नराः ॥ इत्युपदेश छः ।। ( १६५० ) जो ।
(४०) पुण्य माहात्म्य । पुण्य लगइ पृथ्वी पीठि प्रसिद्ध पुण्य लगे'मन वछित सिद्धि | पुण्य लगे निर्मल बुद्धि, पुण्य लगे घरि २ वृद्धि। १ ऋद्धि वृद्धि पुण्य-सुपरिवार तणा योग (अधिक पाठ)