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( १८६) (२३) शील वर्णन
तीर्थ विण स्नान, दत्त' विण बहुमांन । चंदन विण विलेयन, अलंकार विण विभूषण । लोके लेई न सकीयइ एहQ निधान। . मुक्तिदान, सावधान, अमूलमत्र वसीकरण, दुर्गति हरण । अमू तु शृगार, सयम श्री हार । भवाभोधि तारण, संकट निवारण । मोह महीपाल सिरि कील, करइ पुण्य कउ उन्मील । नासइ मटन रूपीउ भील, उन्मूलइ अवेसास रूपी3 उखील । न करवी एह नइ विषइ ढीलि । तिण पालिवउ निर्मल शील ॥ सू० ।।
(४) शील वर्णन (२) शील, अति सुशील । विण स्नात्र पवित्री करणु, विण अलंकार आभरणु । नग त्रय वश्य करु, दुग्गंति हरु । विश्वास तणु कारण, अकीति निवारण ||१४।। नै०
(२५) पात्रो गमन दोपपरदार संग लगी घरबार चूकिया।
धनधान्य चूकिया। खाएवा पीएवा चूकिया।
अोढेवा पहिरेवा चूकियइ ! , स्वजन परजन चूकिया। .
देह वान चूकिया। , श्राचार व्यवहार चूकियइ । , सत्य शौच चूकिया । , देवगुरु चूकिया। " धर्ममार्ग चूकियइ। -
१ प्रदत्त बहुमान २ नउ ३ रूपीयउ ४ श्री शील । ५ मूकिया ६ स्तेहवान ।