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(२८) सिद्धान्त सभिलीइ । तत्व अभ्यासीइ । विचार पूछीइ । वटनक दीजीइ । सामायक लीजीइ । अधीत शास्त्रा गुणीइ । धर्मना फल लुणीह । पर स्त्री परिहरीइ । नियम सपौषध लीनइ । तीर्थ यात्रा कीजइ । निन शासन नी प्रमावना कीजइ । अठाही महोत्सव कीजइ । गुरु सन्मान दीजइ । एवं विध जिन धर्म भाव सहित कीजह ।। पु० ।
(२१) दान वर्णन
दानु, विश्व रंजनु । भवामोघि निस्तरण शोकु, यशः प्रकाश केतु कीर्ति नर्तकी रंगभूमि, सकल मौख्य बीजाकुर क्षेत्र रग भूमि । कल्लोल कमला वशीकरण, ममग्र गुण गणामत्रण । करइ लोक गान, जिणइ लाभइ सन्मान । निः समान, वधारइ कीर्ति विमान । रुडउ भावइ संतान, पामोइ शुभ स्थान । भदांवातर लहीद घणु धान, प्रतापि करो नीपइ भान । पापणइ उदार पणइ वमावइ रान, लक्ष्मी नइ उछइ वान जिह नह मनि हुयइ सान, तिणि माहि मानि दान, देवउ दान ।। ८८ ॥ जै०
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( २२ ) दाने पुण्य संख्या
यदि मेवस्य धारा संख्या भवति । दिवि तारा सख्या। भूतले रेक कण सख्या । समुद्रे मत्स्य सख्या। मेरु गिरी स्वर्ण सख्या । मातृ स्नेह सख्या । सर्वज गुण संख्या । दुज्जने दोप संख्या । श्राकाशे प्रदेश तख्या । जीवस्य गति सख्या । सत्तात्र दाने पुण्य संख्या भवति || छ ।। पु.